शीर्षक: द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद रूस में सबसे बड़ी घुसपैठ: यूक्रेनी सेना की साहसिक कार्रवाई
भूमिका: 14 अगस्त 2024 को, रूस-यूक्रेन युद्ध के ढाई साल बाद, एक ऐसा मोड़ आया जिसने वैश्विक मंच पर सबका ध्यान खींचा। रूस में यूक्रेनी सेना द्वारा की गई यह घुसपैठ द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद से अब तक की सबसे बड़ी सैन्य कार्रवाई मानी जा रही है। इस घटना ने न केवल क्षेत्रीय स्थिरता को चुनौती दी है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय संबंधों और भू-राजनीतिक समीकरणों को भी झकझोर दिया है।
घटना का विवरण: इस रिपोर्ट के अनुसार, यूक्रेन ने 900 दिनों की लंबी तैयारी के बाद रूस के 1,000 वर्ग किमी क्षेत्र पर कब्जा कर लिया। यह घुसपैठ रूस के सुदजा और कुर्स्क क्षेत्र में हुई, जहाँ यूक्रेनी सेना ने लगातार छह दिनों तक रूसी सेना को पीछे धकेला। इस अभियान में 40 रूसी सैनिक मारे गए और 121 घायल हुए, जबकि यूक्रेनी सेना ने इस दौरान अपनी स्थिति को मजबूत करते हुए रूस के बैकफुट पर होने का दावा किया।
रणनीति और तैयारी: इस घुसपैठ की योजना तीन दिन पहले ही बना ली गई थी। यूक्रेनी सेना ने अपने सैनिकों को एक दिन पहले ही सूचना दी, जिससे उन्हें पूरी तैयारी का समय मिला। रूस ने अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) और संयुक्त राष्ट्र (UN) से इस मामले में हस्तक्षेप की मांग की है।
भू-राजनीतिक प्रभाव: इस घुसपैठ ने रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे संघर्ष को एक नया मोड़ दिया है। यह घटना न केवल यूरोप बल्कि पूरे विश्व के लिए चिंता का विषय बन गई है। रूस और यूक्रेन के बीच इस युद्ध का असर वैश्विक अर्थव्यवस्था पर भी पड़ सकता है, खासकर ऊर्जा के क्षेत्र में।
निष्कर्ष: रूस में यह यूक्रेनी घुसपैठ द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद से सबसे बड़ी सैन्य कार्रवाई मानी जा रही है। यह घटना वैश्विक भू-राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकती है। अब यह देखना बाकी है कि आने वाले दिनों में इस घटना का असर कैसे दिखाई देता है और वैश्विक शक्तियां इस पर कैसी प्रतिक्रिया देती हैं।
रूस-यूक्रेन युद्ध 24 फरवरी 2022 को शुरू हुआ था। इस युद्ध का आरंभ रूस द्वारा यूक्रेन पर एक पूर्ण पैमाने पर हमला करने के साथ हुआ। इस हमले को कई कारकों का परिणाम माना जाता है, जिनमें से कुछ प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं:
1. नाटो (NATO) का विस्तार:
यूक्रेन नाटो (उत्तर अटलांटिक संधि संगठन) के सदस्य बनने की ओर बढ़ रहा था। रूस इसे अपनी सुरक्षा के लिए खतरा मानता था क्योंकि नाटो का विस्तार रूस की पश्चिमी सीमाओं तक पहुँचने लगा था। रूस ने बार-बार चेतावनी दी थी कि यूक्रेन का नाटो में शामिल होना उसके लिए 'रेड लाइन' होगी।
2. पूर्व सोवियत संघ की भूमि पर नियंत्रण:
रूस हमेशा से सोवियत संघ के विघटन के बाद बने देशों पर प्रभाव बनाए रखना चाहता था। यूक्रेन, जो सोवियत संघ का हिस्सा था, के पश्चिमी प्रभाव में जाने और यूरोपियन यूनियन के करीब आने से रूस नाराज था।
3. डोनबास क्षेत्र का विवाद:
यूक्रेन के डोनबास क्षेत्र में 2014 से ही विद्रोह चल रहा था, जिसमें रूस समर्थक विद्रोहियों ने कुछ क्षेत्रों पर नियंत्रण कर लिया था। रूस ने उन विद्रोहियों का समर्थन किया, और यूक्रेन ने इन क्षेत्रों पर अपना अधिकार बनाए रखने की कोशिश की। यह विवाद धीरे-धीरे बढ़ता गया और युद्ध में बदल गया।
4. क्राइमिया का अधिग्रहण:
2014 में रूस ने यूक्रेन के क्राइमिया प्रायद्वीप को अपने में मिला लिया। इस कार्रवाई को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अवैध माना गया, और इसने यूक्रेन और रूस के बीच तनाव को और बढ़ा दिया। इस घटना के बाद से ही दोनों देशों के बीच दुश्मनी बढ़ती गई।
5. रूस की सामरिक महत्वाकांक्षाएं:
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का लक्ष्य रूस की खोई हुई महाशक्ति की स्थिति को पुनः प्राप्त करना है। यूक्रेन पर हमला करके, पुतिन ने यह संकेत दिया कि रूस अपने पड़ोसी देशों को अपने प्रभाव क्षेत्र में बनाए रखने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है।
6. संस्कृति और भाषा का मुद्दा:
यूक्रेन में रूस समर्थक और यूक्रेन समर्थक समूहों के बीच सांस्कृतिक और भाषाई विभाजन भी एक कारण है। रूस ने दावा किया कि वह रूसी भाषी लोगों की रक्षा के लिए यह कदम उठा रहा है, जबकि यूक्रेन ने इसे अपनी संप्रभुता पर हमला माना।
इन सभी कारणों के चलते रूस और यूक्रेन के बीच तनाव बढ़ता गया, और अंततः यह युद्ध में तब्दील हो गया। युद्ध ने वैश्विक राजनीति, अर्थव्यवस्था और ऊर्जा आपूर्ति को गहराई से प्रभावित किया है, और अभी तक इस संघर्ष का अंत स्पष्ट नहीं है।