राज्यसभा और विधान परिषद में एससी-एसटी आरक्षण की संभावना पर आधारित आर्टिकल
भारतीय राजनीति में आरक्षण का मुद्दा हमेशा से एक संवेदनशील और महत्त्वपूर्ण विषय रहा है। हाल ही में, इस विषय पर नई चर्चा ने जोर पकड़ा है, जिसमें राज्यसभा और विधान परिषद में अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए आरक्षण की संभावना पर विचार किया जा रहा है।
क्या है वर्तमान स्थिति?
लोकसभा और विधानसभाओं में एससी-एसटी के लिए आरक्षण की व्यवस्था भारतीय संविधान के अनुच्छेद 330 और 332 के तहत की गई है। यह आरक्षण 10 वर्षों के लिए निर्धारित था, जिसे बार-बार विस्तार दिया गया है। हालाँकि, राज्यसभा और विधान परिषद जैसी संस्थाओं में इस प्रकार का आरक्षण अब तक लागू नहीं किया गया है।
वर्तमान चर्चा का कारण
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की आगामी बैठक, जो 31 अगस्त को होने वाली है, में इस विषय पर अहम निर्णय लिया जा सकता है। इस बैठक में आरक्षण के मुद्दे पर चर्चा की जाएगी और संभवतः राज्यसभा और विधान परिषद में एससी-एसटी के लिए आरक्षण लागू करने का प्रस्ताव रखा जा सकता है।
आरक्षण का समर्थन
अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के नेताओं ने लंबे समय से राज्यसभा और विधान परिषद में आरक्षण की मांग की है। उनका मानना है कि इस प्रकार का आरक्षण सामाजिक न्याय की दिशा में एक और कदम हो सकता है।
सम्भावित चुनौतियाँ
हालांकि, इस मुद्दे पर कई चुनौतियाँ भी हैं। कुछ राजनीतिक दल और समाज के कुछ वर्ग इस प्रकार के आरक्षण का विरोध कर सकते हैं। उनका तर्क है कि आरक्षण का उद्देश्य संसदीय संस्थाओं की दक्षता को प्रभावित कर सकता है।
निष्कर्ष
राज्यसभा और विधान परिषद में एससी-एसटी आरक्षण की संभावना न केवल एक संवैधानिक मुद्दा है बल्कि यह सामाजिक और राजनीतिक संतुलन का भी विषय है। यदि भाजपा की बैठक में इस पर सकारात्मक निर्णय लिया जाता है, तो यह भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण बदलाव होगा। इसके अलावा, इस निर्णय का आने वाले चुनावों पर भी बड़ा प्रभाव पड़ सकता है।
अंतिम टिप्पणी
आरक्षण का यह मुद्दा देश की राजनीति में एक नया मोड़ ला सकता है। यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले दिनों में इस पर क्या निर्णय लिया जाता है और इसका भारतीय लोकतंत्र पर क्या प्रभाव पड़ता है
राज्यसभा और विधानसभा दोनों ही भारत की विधायी संस्थाएँ हैं, लेकिन उनका कार्यक्षेत्र, गठन और अधिकार क्षेत्र अलग-अलग हैं। आइए, इन दोनों के बीच के प्रमुख अंतर को समझते हैं:
1. स्तर और क्षेत्र
- राज्यसभा: यह भारतीय संसद का उच्च सदन (Upper House) है और इसका कार्यक्षेत्र पूरे देश तक सीमित है। इसे "परिषद्त प्रतिनिधियों" का सदन भी कहा जाता है।
- विधानसभा: यह राज्य की विधायी संस्था है और इसका कार्यक्षेत्र संबंधित राज्य तक सीमित है। इसे राज्य का "निम्न सदन" या "लोकसभा" कहा जाता है।
2. सदस्यों की संख्या
- राज्यसभा: राज्यसभा में अधिकतम 250 सदस्य हो सकते हैं, जिनमें से 238 सदस्य राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रतिनिधि होते हैं, जबकि 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा नामांकित किए जाते हैं।
- विधानसभा: प्रत्येक राज्य की विधानसभा में सदस्यों की संख्या उस राज्य की जनसंख्या के आधार पर होती है। कुछ राज्यों में यह संख्या 60 से 500 तक हो सकती है।
3. निर्वाचन और सदस्यता
- राज्यसभा: राज्यसभा के सदस्य अप्रत्यक्ष चुनाव के माध्यम से चुने जाते हैं। राज्य की विधानसभाओं के सदस्य राज्यसभा के सदस्यों को चुनते हैं। राज्यसभा एक स्थायी सदन है और इसके एक तिहाई सदस्य हर दो साल में सेवानिवृत्त होते हैं।
- विधानसभा: विधानसभा के सदस्य सीधे जनता द्वारा चुने जाते हैं। ये सदस्य 5 साल के कार्यकाल के लिए चुने जाते हैं, हालांकि, विधानसभा को पहले भी भंग किया जा सकता है।
4. अधिकार और शक्तियाँ
- राज्यसभा: राज्यसभा के पास विधायी और प्रशासनिक शक्तियाँ होती हैं, लेकिन वह लोकसभा के बराबर नहीं होती। वित्तीय मामलों में राज्यसभा के पास सीमित अधिकार होते हैं। बजट या धन विधेयक राज्यसभा में पास नहीं हो सकता जब तक लोकसभा द्वारा उसे स्वीकृत न किया गया हो।
- विधानसभा: राज्य की विधानसभाओं के पास राज्य के मुद्दों पर पूर्ण विधायी अधिकार होते हैं। वे राज्य के बजट, नीतियों और कानूनों को पारित करने के लिए जिम्मेदार होती हैं।
5. अध्यक्षता
- राज्यसभा: राज्यसभा की अध्यक्षता भारत के उपराष्ट्रपति करते हैं, जिन्हें राज्यसभा के सभापति कहा जाता है।
- विधानसभा: विधानसभा की अध्यक्षता स्पीकर द्वारा की जाती है, जिसे विधानसभा के सदस्यों द्वारा चुना जाता है।
6. सदन का स्थायित्व
- राज्यसभा: राज्यसभा एक स्थायी सदन है, जिसे भंग नहीं किया जा सकता।
- विधानसभा: विधानसभा को भंग किया जा सकता है और नए चुनाव कराए जा सकते हैं।
इन अंतर के साथ, यह स्पष्ट है कि राज्यसभा और विधानसभा दोनों ही भारत के लोकतांत्रिक ढांचे के महत्वपूर्ण हिस्से हैं, लेकिन उनकी भूमिकाएँ और जिम्मेदारियाँ भिन्न हैं।