पीर गुराडिया मामले में जयस संगठन का थाने पर घेराव, आदिवासी समाज के लिए न्याय की मांग।
मंदसौर, 14 अगस्त 2024: मंदसौर जिले के नारायणगढ़ थाना क्षेत्र के गांव पीर गुराडिया में आदिवासी समाज के परिवार के साथ हुए अत्याचार के खिलाफ जयस (जय आदिवासी युवा शक्ति) संगठन ने कड़ा विरोध जताया। आदरणीय संजय जी खराड़ी के नेतृत्व में संगठन के कार्यकर्ताओं ने नारायणगढ़ थाने का घेराव किया और पुलिस प्रशासन के खिलाफ जोरदार नारेबाजी की।
जयस अध्यक्ष संजय जी खराड़ी, पवन गमेतिया, नागेश्वर भाटी, नरेन्द्र बुज एवं समस्त सहयोगी साथियों ने थाना प्रभारी की कड़ी आलोचना की और मामले में पुलिस द्वारा की जा रही लापरवाही पर नाराजगी व्यक्त की। उन्होंने जोर देकर कहा कि आदिवासी माताओं और बहनों के साथ हुए अन्याय के खिलाफ तुरंत कार्रवाई की जाए। खराड़ी जी ने एसटी/एससी एक्ट के तहत सभी आरोपियों के खिलाफ विभिन्न धाराओं में केस दर्ज कराने का दबाव बनाया।
चेतावनी और मांग:
जयस संगठन ने स्पष्ट शब्दों में चेतावनी दी कि अगर पुलिस ने 24 घंटे के भीतर आरोपियों को गिरफ्तार नहीं किया, तो पूरे मध्य प्रदेश का आदिवासी समाज एसपी कार्यालय का घेराव करेगा। संगठन ने पुलिस को किसी भी प्रकार की लापरवाही से बचने की सलाह दी, अन्यथा गंभीर परिणाम भुगतने की चेतावनी दी है।
इस प्रदर्शन के दौरान जयस संगठन के सभी प्रमुख कार्यकर्ता उपस्थित रहे और उन्होंने एकजुटता का प्रदर्शन किया। संगठन के सदस्यों ने आदिवासी समाज के लिए न्याय सुनिश्चित करने के अपने संकल्प को दोहराया।
मंदसौर के पीर गुराड़िया में आदिवासी परिवार पर अत्याचार, दंबगों ने घर को तोड़ा और परिवार को बेघर किया
मंदसौर के नारायणगढ़ थाना क्षेत्र के गांव पीर गुराड़िया में एक आदिवासी परिवार के साथ हाल ही में घोर अन्याय हुआ है। गांव के कुछ दबंगों ने इस परिवार को, जो वर्षों से यहाँ निवास कर रहा था, बेघर कर दिया। दबंगों ने न केवल इस परिवार के घर को तोड़ा, बल्कि उनके साथ मारपीट भी की और उनके खाने-पीने के सामान को भी नष्ट कर दिया।
जयस मिडिया प्रभारी "श्री नागेश्वर भाटी का बयान"
यह घटना आदिवासी समुदाय के लिए एक गहरी चोट है, जो पहले से ही समाज में कई चुनौतियों का सामना कर रहा है। इस अत्याचार के खिलाफ जयस संगठन ने सख्त कदम उठाते हुए स्थानीय थाना प्रभारी पर कार्रवाई की मांग की और एसटी/एससी एक्ट के तहत आरोपियों पर केस दर्ज करवाया है। संगठन ने चेतावनी दी है कि अगर 24 घंटे के अंदर आरोपियों को गिरफ्तार नहीं किया गया तो पूरे मध्य प्रदेश के आदिवासी समाज द्वारा एसपी कार्यालय का घेराव किया जाएगा।
इस दुखद घटना ने एक बार फिर से हमारे समाज में व्याप्त असमानता और अन्याय को उजागर किया है। पीड़ित परिवार के लिए न्याय की मांग और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की आवश्यकता है।
भारत में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, जिसे आमतौर पर एट्रोसिटी एक्ट के नाम से जाना जाता है, के तहत विभिन्न अपराधों के लिए विभिन्न धाराएं लागू होती हैं। पीर गुराड़िया की घटना में, जहां आदिवासी परिवार को बेघर किया गया, मारपीट की गई, और उनके घर तथा खाने-पीने के सामान को नुकसान पहुंचाया गया, वहाँ निम्नलिखित धाराएं लगाई जा सकती हैं:
1. धारा 3(1)(r) और 3(1)(s):
- धारा 3(1)(r): इस धारा के तहत, यदि कोई व्यक्ति किसी अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्य को सार्वजनिक रूप से अपमानित करता है या उसके आत्म-सम्मान को ठेस पहुँचाता है, तो इसे अपराध माना जाएगा।
- धारा 3(1)(s): यह धारा तब लागू होती है जब कोई व्यक्ति अनुसूचित जाति या जनजाति के सदस्य को जाति के आधार पर गाली-गलौज करता है।
2. धारा 3(1)(g):
- यह धारा तब लागू होती है जब किसी अनुसूचित जाति या जनजाति के व्यक्ति को उसकी संपत्ति से वंचित करने के उद्देश्य से उसे बेदखल किया जाता है। इस घटना में दबंगों द्वारा आदिवासी परिवार को बेघर करना इस धारा के तहत आता है।
3. धारा 3(1)(v):
- यदि कोई व्यक्ति अनुसूचित जाति या जनजाति के सदस्य के खिलाफ उस व्यक्ति की सामाजिक या आर्थिक स्थिति का फायदा उठाते हुए अत्याचार करता है, तो यह धारा लागू होती है। यहाँ दबंगों द्वारा किए गए मारपीट और घर तोड़ने की घटना इस धारा के अंतर्गत आती है।
4. धारा 3(1)(z):
- इस धारा के तहत, यदि कोई व्यक्ति अनुसूचित जाति या जनजाति के सदस्य की जीवन शैली या आजीविका को नष्ट करने के उद्देश्य से उसके घर या संपत्ति को नुकसान पहुंचाता है, तो यह धारा लागू होगी।
इन धाराओं के तहत मामला दर्ज किया जाना चाहिए और पीड़ित परिवार को न्याय दिलाने के लिए उचित कानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए।
वन अधिकार अधिनियम, 2006: एक संक्षिप्त विवरण
वन अधिकार अधिनियम, 2006 एक महत्वपूर्ण कानून है जो भारत में वनों में रहने वाले समुदायों और आदिवासी आबादी के अधिकारों पर केंद्रित है। इस अधिनियम का उद्देश्य उन समुदायों को उनके पारंपरिक अधिकारों को वापस देना है जो सदियों से वनों पर निर्भर रहे हैं।
इस अधिनियम के प्रमुख बिंदु:
- वन निवासियों के अधिकार: यह अधिनियम वन में रहने वाले अनुसूचित जनजाति और अन्य परंपरागत आदिवासियों को उनके वन भूमि पर रहने, खेती करने, जलावन की लकड़ी इकट्ठा करने, पशुओं की चराई, गैर-इमारती वन उत्पादों का संग्रह करने आदि जैसे अधिकारों को मान्यता देता है।
- वन प्रबंधन अधिकार: समुदायों को अपने पारंपरिक वन संसाधनों का संरक्षण और प्रबंधन करने का अधिकार दिया जाता है।
- ग्राम सभा की भूमिका: ग्राम सभा को वन अधिकारों के निर्धारण और प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका दी गई है।
- पारदर्शिता और जवाबदेही: इस अधिनियम में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए कई प्रावधान किए गए हैं।
इस अधिनियम का उद्देश्य:
- सामाजिक न्याय: आदिवासी समुदायों के सामाजिक और आर्थिक उत्थान में योगदान देना।
- वन संरक्षण: वनवासियों को वन संरक्षण में भागीदार बनाकर वनों की रक्षा करना।
- सशक्तिकरण: वनवासी समुदायों को सशक्त बनाना ताकि वे अपने अधिकारों के लिए लड़ सकें।
चुनौतियाँ:
- अमलीकरण में कठिनाइयाँ: इस अधिनियम के प्रभावी कार्यान्वयन में कई चुनौतियाँ हैं जैसे कि भूमि रिकॉर्ड का अभाव, प्रशासनिक बाधाएँ और स्थानीय विवाद।
- जमीनी स्तर पर जागरूकता का अभाव: कई आदिवासियों को अभी भी अपने अधिकारों के बारे में पूरी जानकारी नहीं है।